सैफी समाज इंडिया, एक छोटा सा इतिहास

हर समाज का अपना एक इतिहास होता है कि :

  • वह समाज कहां से आया ?
  • सैफी समाज (बिरादरी) का नाम कैसे पड़ा ?
  • समाज को संगठित किसने किया ?
  • समाज के संगठन कार्यकर्ता कौन रहे ?
  • समाज को संगठित करने की आवश्यकता क्यों हुई ?
  • समाज के सर्वांगीण विकास के लिए कौन-कौन से प्रारूप तैयार किए गए आदि आदि।

सैफी समाज:-

हमारे हिंदुस्तान में मुस्लिम लोहार तथा बढ़ई का पुश्तैनी कार्य करने वाले लोगों को सैफी व इनसे जुड़े सभी परिवार सैफी समाज (बिरादरी) कहलाता है। चुंकि लोहार व बढ़ई कारीगरों द्वारा सभी अलग-अलग प्रकार के औजार ,कृषि यंत्र, जुगाड़ के साधन, पुराने युद्धों में काम आने वाले तलवार, बंदूक, तोपें ,भाले ,चाकू ,तीर आदि हथियार बनाए जाते थे । इनको बनाने वाले सभी कारिगरों को लोहार, बढ़ई, खाती आदि के संबोधनों से पुकारा जाता था।

इसी दौरान कुछ लोगों में जागरूकता आई तो इस सोच से इन सभी ने एक संगठित समाज बनाने का निर्णय लिया । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि समाजों से प्रेरणा लेकर एक समाज गठित किया गया। इस समाज को गठित करने के लिए बढ़ई व लोहार जाति के कुछ प्रबुद्ध नागरिकों को जोड़ा गया । इसी प्रकार जोधपुर राजस्थान में सन 1972 को कुछ प्रबुद्ध नागरिकों की मीटिंग हुई और इस मीटिंग में जोधपुर स्तर की एक संस्था का गठन किया गया जो कि उस समय के दौरान दाऊदी नाम से जाना गया। यह संस्था सिर्फ जोधपुर स्तर के लिए थी। इस बीच संपूर्ण भारत में जागरूकता का बिगुल बज चुका था। चारों ओर जागरूकता का संचार होना शुरू हो गया । सभी बढ़ई व लोहार जाति के लोग अपनी तालीमी तरक्की के लिए और अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए पूर्णतया जागरूक हो चुके थे।

इसी मकसद को लेकर संपूर्ण उत्तर प्रदेश में चुंकी इस जाति के लोग इस प्रदेश में अधिक तादाद में थे और यहीं से जोधपुर, राजस्थान आकर बसे थे , उन सभी ने बड़े पैमाने पर मीटिंग्स और चाय की बैठकें आयोजित कर विचार- विमर्श शुरू कर दिया। इन्हीं कोशिशों और बैठकों के आयोजन से बिरादरी का नाम कुछ मुख्य एवं प्रबुद्ध नागरिकों के योगदान व कोशिशों से सामने आया । इनमें प्रमुख स्तर के जो लोग थे उनके पीछे का इतिहास तो बहुत लंबा हो जाएगा इसलिए प्रमुख लोगों के चंद नामों को जानकारी के लिए यहां दर्शाया जा रहा है :-

कुछ मुख्य एवं प्रबुद्ध नागरिकों के नाम
हजरत मौलाना उस्मान फारक़तलीत साहब (पिलखुवा वाले स्वतंत्रता सेनानी और अल जमीयत उर्दू समाचार के संपादक)
रशीद सैदपुरी (शायर व लेखक) मोजी खान (ए.सी.पी. दिल्ली पुलिस रामाला बागपत) मुला सईद पहलवान अमरोहा
डॉ.मेहरुद्दीन खान (लेखक वह पत्रकार नवभारत टाइम्स) अली हसन चकनवाला गजरौला (पत्रकार एवं लेखक) हाजी अली शेर
नज़ीरुल अकरम युसूफ सैफी मोहम्मद अली सैफी (बुलंदशहर)
एम. वकील सैफी (लेखक दिल्ली) नज़ीर अहमद (बुलंदशहर) मोहम्मद आफताब आलम (डाई मेकर) जोधपुर, राजस्थान ।
कामरेड हकीमुल्लाह सैफी बाबू हनीफ बछरायुनी मोहम्मद गुलाम जिलानी
सुलेमान साबिर सैफी पिलखुआ मोहम्मद अतीक सैफी मुरादाबाद मोहम्मद सलाउद्दीन फरीदाबाद
हाजी नसीरुद्दीन अलीगढ़ अब्दुल सत्तार फोरमैन जोधपुर, राजस्थान मोहम्मद किफायतुल्लाह सैफी

चंद लफ्ज़ हमारे सैफी समाज के बुज़ुर्गों की शान में पेश हैं।

جماعتِ سیفی کے معزز بزرگوں کا فیضانِ عظیم ہے،
دین و اخلاق کی راہوں پر ان کا ہر قدم مستحکم ہے۔

علم و خدمت میں ان کی کاوشیں بے مثال ہیں،
وفاداری و قربانی کی عظیم مثال بن گئے ہیں۔

ہر دل میں ان کے لئے بے پناہ عقیدت ہے،
جماعتِ سیفی کے یہ عظیم بزرگ ہیں، جن کی عظمت بے مثال ہے

जमात-ए-सैफी के मा'ज़िज़ बुज़ुर्गों का फ़ैज़ान-ए-अज़ीम है,
दीन और अख़लाक़ की राहों पर उनका हर क़दम मुस्तहक़म है।

इल्म और ख़िदमत में उनकी कोशिशें बे-मिसाल हैं,
वफ़ादारी और क़ुर्बानी की अज़ीम मिसाल बन गए हैं।

हर दिल में उनके लिए बेपनाह अक़ीदत है,
जमात-ए-सैफी के ये अज़ीम बुज़ुर्ग हैं, जिनकी अज़मत बे-मिसाल है

इन सभी बुजुर्गों सहित सैफी समाज के हजारों बुज़ुर्गों और लोगों ने देश के कोने-कोने से आकर मीटिंग्स करीं। कई नाम सैफी बिरादरी के लिए सुझाए गए जैसे दाऊदी , नूंही , सैफी आदि। इन सभी नामों से सैफी नाम सभी की रायशुमारी से तय कर लिया गया।

देश के हर कोने में सैफी समाज का नाम अलग-अलग तरह से रखा जाता था परंतु मार्च 1975 में गुलावठी में एक बहुत बड़ा महासम्मेलन हुआ जिसमें सैफी बिरादरी का संपूर्ण देश में, एक रूप में, पहचान के लिए, नाम रखना तय हुआ । इसी कड़ी में अथक प्रयासों के बाद 6 अप्रैल 1975 को अमरोहा में सैफी समाज के महासम्मेलन में समाज का नाम सैफी रख दिया गया।भारत देश के कोने-कोने से बढ़ई व लोहार जाति के लोग इकट्ठा हुए और उन्होंने नये समाज का गठन कर सैफी नाम पर मोहर लगा दी। उस ऐतिहासिक महासम्मेलन में स्वतंत्रता सेनानी और अल जमीयत उर्दू समाचार पत्र के संपादक, होनहार बुज़ुर्ग हज़रत मौलाना मोहम्मद उस्मान फारक़लीत पिलखुवा के ज़ेरे सरपरस्ती सैफी नाम रखा गया ।यह सैफी समाज के लिए बेहद फख़्र का दिन था।

यही कारण है कि 6 अप्रैल को ,सैफी डे ,पूरे देश में फख़्र से मनाया जाता है। इस दिन समाज उत्थान के अनेक कार्य सभी शहरों में, सैफी समाज द्वारा किए जाते हैं। 6 अप्रैल सैफी दिवस के दिन पूरे देश में बड़े-बड़े प्रोग्राम होते हैं और इस अवसर पर बुजुर्गों ,गरीबों और बेसहारा लोगों की मदद के कार्यक्रम किए जाते हैं । साथ ही साथ विद्यार्थियों और समाजसेवियों को सम्मानित भी किया जाता है।

आज सैफी समाज की पहचान विश्व स्तर पर होने लगी है। यह देश के लिए भी बहुत ही गर्व की बात है।

  • अरबी ज़ुबान में सैफ के मायने हैं "तलवार" और सैफी के मायने हैं हिफाज़त करने वाला।
  • फारसी ज़ुबान में सैफी के मायने हैं बहादुर और धनी ।
  • तुर्की जुबान में सैफी के मायने हैं फनकार और हुनरमंद कारीगर।
  • सामी ज़बान में सैफ़ी के मायने तेज़ रफ़्तार ।
  • ब्रजरानी में सैफी के मायने हैं समाज सेवा करने वाला।
  • साउथ एशिया के लगभग सभी देशों में मुस्लिम्स बढ़ई व लोहार जाति के बहुत से लोग हैं। वे सभी सैफी समाज से संगठित होकर संपूर्ण विश्व में अपनी कारीगरी, कारोबार, एजुकेशन, आदि से सैफी समाज का परचम् लहराए हुए हैं।
    सैफी की अंग्रेजी SAIFEE जिसका संधि विच्छेद बहुत ही नायाब है:-
    SAIFEE:- South Asian Industrial Fundamental & Economic Education. (हिंदी अनुवाद: दक्षिण एशियाई, औद्योगिक,मौलिक एंव आर्थिक शिक्षा)

    SAIFEE (South Asian Industrial Fundamental & Education) दक्षिण एशिया में औद्योगिक और शैक्षिक विकास को बढ़ावा देने वाला एक प्रमुख संगठन है। यह संगठन विभिन्न देशों में औद्योगिक मानकों को सुधारने और शिक्षा के माध्यम से कुशल जनशक्ति को तैयार करने के उद्देश्य से कार्य करता है।

    SAIFEE का मुख्य उद्देश्य उद्योग और शिक्षा के बीच एक सेतु का निर्माण करना है ताकि छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान और औद्योगिक अनुभव मिल सके। संगठन विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों, कार्यशालाओं और सेमिनारों का आयोजन करता है, जहां विशेषज्ञ और उद्योग जगत के पेशेवर अपने अनुभव और ज्ञान को साझा करते हैं।

    इसके अतिरिक्त, SAIFEE उद्योग और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करता है। यह संगठन विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं को प्रोत्साहित करता है कि वे नई तकनीकों और प्रक्रियाओं का विकास करें जो उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप हों।

    SAIFEE का दृष्टिकोण यह है कि केवल सैद्धांतिक ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है; व्यावहारिक अनुभव और उद्योग के साथ संपर्क भी आवश्यक हैं। इस दृष्टिकोण के तहत, SAIFEE विभिन्न उद्योगों के साथ साझेदारी करता है और छात्रों को इंटर्नशिप और ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग के अवसर प्रदान करता है।

    समग्र रूप से, SAIFEE दक्षिण एशिया में औद्योगिक विकास और शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिससे क्षेत्र की आर्थिक और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा मिल रहा है।

अब बात करते हैं सैफी समाज जोधपुर ,राजस्थान की।

सैफी समाज के अनेक लोग उत्तर प्रदेश से पलायन कर अपने-अपने रोज़गार के लिए अनेक अन्य शहरों में बस गए । इसी दौरान जोधपुर में रेलवे की स्थापना हुई तो हमारे सैफी समाज के बुजुर्ग जोधपुर पहुंचे और उन्होंने रेलवे की नौकरी करना शुरू किया । यहीं पर सभी लोग इकट्ठे होना शुरू हुए । एक दूसरे से मिलना जुलना शुरू किया । फिर उन्होंने सैफी समाज जोधपुर की स्थापना की सन 1972 में । एक छोटी सी मीटिंग हुई और उस छोटी सी मीटिंग में चंद बुज़ुर्ग लोगों ने यह तय किया कि हम अपनी जमात का नाम दाऊदी रखेंगे । इसी दौरान उन बुजुर्गों को मालूम हुआ कि दिल्ली में और दिल्ली के आसपास में एक बढ़ई और लोहार समाज का गठन किया जा रहा है । तभी से उन लोगों ने उसमें शिरक़त करने का मानस बनाया और वहां मीटिंग्स अटेंड करना शुरू किया । इसी दौरान पूरे भारत के लोग उत्तर प्रदेश के गुलावठी में इकट्ठे हुए । उन्होंने बढ़ई और लोहार समाज का नाम सैफी रखा । उसी से मुतास्सिर होकर जोधपुर के सभी बुजुर्गों ने मिलकर जोधपुर दाऊदी समाज का नाम बदलकर जमात-ए-सैफी रखा । आज वही समाज जमाते सैफी जोधपुर के नाम से जाना जाता है।

जोधपुर सैफी समाज के पहले सदर 1972 में फैज़बक़्श साहब हुए । इन्होंने अपने उस दौर में बहुत ही रौबदार तरीक़े से जमात-ए-सैफी जोधपुर को चलाना शुरु किया। इन्होंने अपने ज़ेरे सरपरस्ती जमात-ए-सैफी की तरक्की के लिए बहुत से काम किये। इनकी काबिना में जनाब अब्दुल सत्तार साहब सचिव चुने गए। इनकी कैबिनेट ने सैफी समाज के उत्थान के लिए बहुत से काम किये।

फैज़बक्श साहब के लंबे और बेहतरीन शासन के बाद जनाब रफीक साहब सदर चुने गए और सचिव फिर से जनाब अब्दुल सत्तार साहब चुने गए व इनकी ज़ेरे सरपरस्ती जमात-ए- सैफी में बहुत से समाज सुधार के काम हुए। इन सभी भी मौअज्ज़िज़ लोगों ने क़ौमी सरपरस्ती में दाऊदी विद्यालय चलाया, अपनी कम्युनिटी की राशन की दुकान खोली,इसी तरह रोज़गार के लिए बहुत से इंतेज़ाम किए। अपनी जोधपुर सैफी कम्युनिटी धीरे-धीरे तरक्की करती रही और कमेटी बनती रहीं। जोधपुर की इस जमात-ए-सैफी कई मौअज़्ज़िज़ लोग सदर बनते रहे और सेक्रेटरी बनते रहे। सेक्रेटरी के संदर्भ में सबसे प्रसिद्ध नाम मरहूम जनाब मोहम्मद यामीन सैफी और जनाब मोहम्मद आफताब आलम का आता है। सन 1996 में इलेक्शन हुए जनाब हफिज़ु़र्रेहमान सदर और जनाब मोहम्मद तकि सेक्रेटरी चुने गए दो साल क़ौम बेहतरीन चली फिर कुछ क़ौमी नाइत्तेफाकियां सभी क़ौमी भाइयों के बीच हुईं। बाद वजह इन नाइत्तेफाकियों के,ये क़ौम सत्ताइस सालों तक बंद रही,इसका खामियाजा हम और हमारी सभी नस्लें हमेशा भुगतेंगी।

साल 2023 में चंद बुजुर्गों की पहल पर क़ौमी ज़मीन सरकार से लेने का मानस बना एक मीटिंग रखी गई जिसमें जनाब अल्लाहबक्श, जनाब आफताब आलम,जनाब मरहूम मोहम्मद यामीन,जनाब मोहम्मद मुनव्वर और जनाब अमन तस्नीम ने शिरक़त करी। मीटिंग में तय हुआ कि जमात-ए-सैफी के लिए ज़मीन सरकार से लेने के लिए नई कमेटी बनाई जाए और सरकारी विभाग में जमा करवाने के लिए जमात -ए-सैफी के कागज़ात तैयार किए जाएं। इस काम का जिम्मा जनाब अमन तस्नीम को मीटिंग में उपस्थित सभी बुज़ुर्ग़ों ने एक राय होकर सौंप दिया। अमन तस्नीम ने पुरानी कमेटी में शामिल कुछेक कमेटी मेंबर्स का इस्तीफा मंजूर करवा पुनः चुनाव करवाकर कर संस्थापक सदस्य के रूप में नई कमेटी बनाई। जिसमें दिनांक 28/08/2023 को चुनाव अधिकारी की अध्यक्षता में कार्यकारिणी के चुनाव हुए और श्री मोहम्मद रईस (अध्यक्ष), श्री मोहम्मद शौकीन व जमील खान (उपाध्यक्ष),श्री मोहम्मद नईम (सचिव), श्री कमल हसन (सहसचिव), श्री रईस खान (कोषाध्यक्ष), श्री अमन तस्नीम-(संस्थापक सदस्य), श्री मोहम्मद रियाज़ (संघठन मंत्री)व श्री जमालुद्दीन , श्री अकील अहमद, श्री मोहम्मद शरीफ़,श्री मोहम्मद नदीम आलम तथा श्री इमरान अहमद कार्यकारिणी सदस्य चुने गये।

चुनाव पश्चात नव निर्वाचित कार्यकारिणी के अध्यक्ष व सचिव द्वारा सैफी क़ौम के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला गया तथा भविष्य में समाज के लिए सभी सरकारी व ग़ैर सरकारी सुविधाओं, अनुदानों की प्राप्ति हेतु प्रयासरत रहने का संकल्प लिया गया। भविष्य में सैफी समाज के सभी नागरिकों को बेहतर शिक्षा, रोज़गार आदि देने के लिए विचार-विमर्श किया गया।

सौजन्य से:
अमन तस्नीम
जोधपुर, राजस्थान।